उत्तराखण्ड से केंद्रीय मन्त्रिमण्डल में सांसद व पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा को सलेक्ट कर कहा जा रहा हैं कि भाजपा हाईकमान ने जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की हैं
लेकिन केंद्रीय कैबिनेट में प्रबल दावेदार अनिल बलूनी, त्रिवेंद्र सिंह रावत व अजय भट्ट में से किसी को मौका ना देकर राज्य सरकार के लिए बीजेपी ने कही बड़ा जोखिम तो मोल नहीं लें लिया हैं
अगर इन तीनो में से ख़ास तौर से अनिल बलूनी या त्रिवेंद्र सिंह को केंद्र में मौका दें दिया जाता तो माना जाता कि दिल्ली में मौका मिलने के चलते ये उत्तराखंड राज्य की राजनीति की जगह केंद्र के अपने मंत्रालय और उसकी परफॉर्मेंस पर ध्यान देकर पीएम मोदी को इम्प्रेस करने का काम करते
लेकिन बीजेपी आलाकमान ने अजय टम्टा को मौका देकर दोनों नेताओं के लिए भविष्य में उत्तराखंड की राजनीति में फुल दखल देने का रास्ता तो साफ नहीं कर दिया.
क्यूंकि अजय टम्टा ना पिछले कई सालो में किसी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के लिए खतरा रहें हैं और ना ही उन्होंने बनने की कोशिश की हैं लेकिन बलूनी, त्रिवेंद्र दोनों सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए खतरा बन सकते हैं या फिर बीजेपी आलाकमान भी चाहता हैं कि डर बना रहें आने वाले समय में किसको ऑप्शन के लिए चुन लें कुछ नहीं कह सकते
मौजूदा समय में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीते अजय टम्टा दलित वर्ग से सीएम धामी व प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट क्रमशः राजपूत व ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लेकिन गढ़वाल से केंद्र में मंत्री ना बनाकर भी संतुलन होता नहीं दिखाई दे रहा हैं, गढ़वाल के किसी सांसद को मौका ना देकर उपेक्षा का आरोप लग रहें हैं उत्तराखंड में अभी तक इतिहास रहा हैं कि अगर बीजेपी का प्रदेश का मुख्यमंत्री गढ़वाल से हुआ तो केंद्र में मंत्री कुमाऊं से बनता रहा हैं त्रिवेंद्र सीएम रहें तो पहले अजय टमटा और अजय भट्ट कुमाऊं से मंत्री बने हालांकि त्रिवेंद्र के मुख्यमंत्री रहते गढ़वाल से रमेश पोखरियाल निशंक भी मंत्री रहें हैं वर्तमान में कुमाऊं से सीएम हैं ऐसे में गढ़वाल से मंत्री बनाने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ हैं जो रिस्क फेक्टर बनाता हैं.
सीएम से मिलकर अजय टम्टा भले ही धन्यवाद और बधाई दें रहें हो लेकिन ये तय हैं कि आने वाले दिनों में फिर प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता को बढ़ावा देने का बड़ा रास्ता खाली बीजेपी आलाकमान ने ही छोड़ दिया हैं..