पहली बार कपाट खुलने के मौके पर केदारपुरी में बंद रही दुकानें…चाय, पानी को भी तरसे तीर्थयात्रीकेदारनाथ धाम के कपाट खुलने पर केदारपुरी में दुकानें बंद रहीं। इस दौरान श्रद्धालु चाय, पानी के लिए तरसते रहे। साथ ही भोजन के अभाव में उन्हें साथ लाए बिस्कुट, चॉकलेट का सहारा लेना पड़ा। दुकानें बंद होने से श्रद्धालु बाबा केदार का प्रसाद भी नहीं खरीद सके।
वहीं, पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी का संचालन भी बंद रहा, जिस कारण जरूरतमंद यात्री भी परेशान रहे। वहीं, शाम को प्रशासन के साथ सफल वार्ता और लिखित आश्वासन पर हक-हकूकधारियों व तीर्थपुरोहितों ने दुकानें खोली। शुक्रवार को केदारनाथ में कपाट खुलने का उत्साह अपने चरम पर रहा। आस्था और भक्ति जहां हिलौरे मार रही थी। वहीं, केदारनाथ में बंद दुकानों के कारण व्यापारिक गतिविधियां ठप होने से श्रद्धालुओं को खासी दिक्कतें भी हुईं।
भले ही गढ़वाल मंडल विकास निगम सहित अन्य कुछ संस्थाओं के द्वारा यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी, लेकिन नाश्ता व भोजन का समय तय होने के कारण, कई लोगों को खाली पेट ही रहना पड़ा।उत्तर प्रदेश के बनारस निवासी मोहित कुमार और नरेंद्र कुमार ने बताया कि उन्हें पैदल मार्ग से लेकर केदारनाथ में पानी की बोतल तक नहीं मिल पाई है। चाय के लिए कई दुकानों के चक्कर लगाए, पर सभी ने ताला लटका रखा था। मध्य प्रदेश से पहुंचे एक यात्री, जो अपनी बुजुर्ग माता, सास-ससुर और बच्चों के साथ धाम पहुंचे थे, वापसी में परेशान रहे। घोड़ा-खच्चरों और डंडी-कंडी का संचालन नहीं होने से उन्हें अपने बुजुर्गों को गौरीकुंड ले जाने के लिए हड़ताल खत्म होने का इंतजार करना पड़ा।
इसलिए हो रहा विरोध
केदारनाथ सभा के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी के अनुसार, 22 अप्रैल को प्रशासन ने बिना विश्वास में लिए केदारनाथ में उनके आवासीय भवनों के आगे गड्ढे किए, जिससे भवनों को खतरा बना है। साथ ही मंदिर मार्ग पर जहां-तहां खुदाई की गई है, जिससे यात्रा में कारोबार होना संभव नहीं है। प्रशासन द्वारा पूर्व में भी जबरन नोटिस भेजने और भवनों को अधिग्रहित किया गया। जिसे लेकर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत केदारनाथ बंद किया गया।
प्रसाद के बिना ही लौटे श्रद्धालु
शुक्रवार को बाबा केदार की यात्रा के शुभारंभ पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु धाम पहुंचे। इस दौरान सुबह छह से सात बजे तक प्रसाद की दो, तीन दुकानें खुली, लेकिन कपाट खुलने के बाद हक-हकूकधारियों और तीर्थपुरोहितों के आह्वान पर सभी दुकानें बंद कर दी गईं, जिसके बाद श्रद्धालु प्रसाद खरीदे बगैर ही लौटने को मजबूर रहे।